कभी कभी मन करता है
किसी का नाम वादियों में ज़ोर ज़ोर से चीखूं।
फिर याद आता है
उनके तो नाम पे भी मेरा हक़ नहीं।
फिर लगता है कि शहर के शोर में
किसी सुनसान कोने में जाके चीखूं।
फिर याद आता है
मेरी आवाज़ पे भी मेरा हक़ नहीं।
"You can make out it is piece of art when the words send a chill down your spine."
कभी कभी मन करता है
किसी का नाम वादियों में ज़ोर ज़ोर से चीखूं।
फिर याद आता है
उनके तो नाम पे भी मेरा हक़ नहीं।
फिर लगता है कि शहर के शोर में
किसी सुनसान कोने में जाके चीखूं।
फिर याद आता है
मेरी आवाज़ पे भी मेरा हक़ नहीं।
Waaah....Kyaaa baaat hai....👌🏼👌🏼
ReplyDelete