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Showing posts from September 22, 2019

चीखूं।

कभी कभी मन करता है किसी का नाम वादियों में ज़ोर ज़ोर से चीखूं। फिर याद आता है उनके तो नाम पे भी मेरा हक़ नहीं। फिर लगता है कि शहर के शोर में किसी सुनसान कोने में जाके चीखूं। फिर याद आता है मेरी आवाज़ पे भी मेरा हक़ नहीं।